स्वामी चिदानंद सरस्वती ने सनातन धर्म और शिक्षा का महत्व पर दिया प्रेरणादायक उद्बोधन
कमल अग्रवाल (हरिद्वार) उत्तराखंड
ऋषिकेश * परमार्थ निकेेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने सनातन प्रोफेशनल कानक्लेव, हरियाणा में सहभाग कर सनातन धर्म और शिक्षा का महत्व विषय पर प्रेरणादायक उद्बोधन दिया।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने सनातन प्रोफेशनल कानक्लेव के माध्यम से कहा कि सनातन धर्म के सिद्धांत न केवल व्यक्तिगत जीवन में बल्कि पेशेवर जीवन के लिये भी महत्वपूर्ण हैं। इससे समाज में नैतिकता और आध्यात्मिकता में वृद्धि की जा सकती है। आध्यात्मिकता को पेशेवर जीवन में ध्यान और योग के माध्यम से शामिल कर जीवन में मानसिक शांति और संतुलन को बनाये रखा जा सकता है।
स्वामी जी ने कहा कि सनातन धर्म और शिक्षा दोनों ही भारतीय संस्कृति के मूल स्तंभ हैं। सनातन धर्म अर्थात “शाश्वत धर्म” जिसमें हमारे आदर्श, मूल्य, मूल, सिद्धांत और परम्परायें समाहित है, इसके बिना आध्यात्मिक विकास सम्भव नहीं है। सनातन धर्म, आत्मज्ञान और आत्म-परिपूर्णता की प्राप्ति के मार्गों को प्रशस्त करता है।
सनातन धर्म समाज में सद्भावना और सहयोग की वृद्धि करता है। सभी के प्रति सहानुभूति, अहिंसा, सत्य और समर्पण का भाव जागृत करता है जो हमें हमारी सांस्कृतिक धरोहर को समझने और उसका सम्मान करने की प्रेरणा देता है और शिक्षा, समाज में ज्ञान और विवेक का प्रसार करती है। यह नैतिक, भौतिक, आध्यात्मिक और बौद्धिक मूल्यों को आत्मसात करने का संदेश देती है। शिक्षा व्यक्ति के व्यक्तित्व को निखारने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यह आत्मनिर्भरता, अनुशासन, सत्यता, कर्तव्यों और अधिकारों जैसे गुणों को विकसित करती है। साथ ही शिक्षा समाज के उत्थान और उन्नति के लिए अत्यंत आवश्यक है।
सनातन धर्म और शिक्षा दोनों ही सामज को अच्छाई, सच्चाई, ऊँचाई के साथ सात्विक जीवन जीने की प्रेरणा देते हैं। ये हमें न केवल व्यक्तिगत विकास की ओर ले जाते हैं, बल्कि समाज में शांति, सद्भावना, और न्याय की स्थापना में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
स्वामी जी ने कहा कि आज इस धरती पर यदि कोई समाधान है तो वह है सनातन। सनातन सब की बात करता है, सब के लिये जीने की बात करता है। सनातन, विध्वंस की नहीं बल्कि निर्माण की बात करता है। सनातन बचेगा तो हम सब बचेंगे, पर्व, त्यौहार और परम्परायें बचेगी।
सनातन से तात्पर्य है जहां समानता हो, समता हो, सद्भाव हो, जहां समता, समानता और सद्भाव की त्रिवेणी बहती हो वही तो सनातन है। आज पूरा विश्व विज्ञान की बात कर रहा है परन्तु यह दृष्टि सनातन से प्राप्त होती है। वर्तमान समय में विज्ञान और सनातन; शिक्षा व सनातन दोनों साथ-साथ चले। हमें बाहरी दुनिया के लिये विज्ञान व शिक्षा चाहिये परन्तु भीतर के लिये सनातन ज्ञान चाहिये इसलिये हमें दोनों में सेतु बनाने की जरूरत है।
स्वामी जी ने कहा कि सनातन बीमारी नहीं है, सनातन इलाज है, सनातन समस्या नहीं बल्कि सनातन समाधान है, सनातन रोग नहीं है, सनातन तो योग है जो सब को जोड़ता है। सनातन दिलों को जोड़ता हैं, दीवारों को तोड़ता है, सभी का समत्व ही सनातन है। सनातन है तो मानवता है, सनातन है तो समरसता है, सनातन है तो सद्भाव है, सनातन है तो समता है। समाज में सनातन की प्रतिष्ठा क्योंकि इसे से शान्ति की प्रतिष्ठा होगी।
स्वामी चिदानंद सरस्वती जी, महामंडलेश्वर प्रेमानंद पुरी जी महाराज, निरंजनी अखाड़ा, मेजर जनरल जीडी बख्शी जी, डॉ. संजीव बालियान सतीश गौतम जी, एसपी यादव जी, कर्नल टिकू अनूप प्रधान डॉ. राकेश मुदगल श्री विष्णु मित्तल श्री सागर खरबंदा आरके मुदगल जी, अशोक सिंह जौनापुरिया और अन्य विशिष्ट अतिथियों का पावन सान्निध्य एवं प्रेरणादायक उद्बोधन प्राप्त हुआ।