शिवभक्तों को कांवड यात्रा की स्मृति में पौधों के रोपण हेतु किया जा रहा प्रेरित
कमल अग्रवाल( हरिद्वार) उत्तराखंड
ऋषिकेश * परमार्थ निकेतन द्वारा प्रतिवर्ष कावंड़ियों और शिवभक्तों के लिये राजाजी नेशनल पार्क नीलकंठ मार्ग पर शुद्ध पेयजल की व्यवस्था, निःशुल्क चिकित्सा सुविधायें, पौधा रोपण व फलदार पौधों का वितरण, सिंगल यूज प्लास्टिक का उपयोग न करने हेतु संकल्प, कपड़े के झोले का वितरण और अनेक सुविधायें प्रदान की जाती हैं ताकि सभी के लिये कावंड यात्रा सहज, सुलभ व यादगार हो सके। अभी तक 20 हजार से अधिक कावड़ियों ने चिकित्सा सुविधाओं का लाभ लिया है और ये सेवायें निरंतर जारी है।
शिवभक्त कांवड यात्रा में अपने गावांे से पैदल चलकर आते हैं, कष्ट सहन करते हुये यात्रा करते हैं। कष्ट सहन करना एक तरह की तपस्या है और वह तपस्या जीवन का एक हिस्सा बनती है। जब हम यात्रा से वापस लौटते है तो वह धैर्य, धीरता, गंभीरता, सहिष्णुता और सहनशीलता हमारे जीवन का अंग बन जाती है। यही कांवड़ यात्रा का वास्तविक स्वरूप भी यही है।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने अपने संदेश में कहा कि कांवड़ यात्रा स्व से शिवत्व की यात्रा हैं। यह सत्यम, शिवम और सुन्दरम की यात्रा है। कांवड़ यात्रा संकल्प व तपस्या की यात्रा है; यह यात्रा सात्विक हो इसलिये यह यात्रा भगवान के नाम का जप करते हुये पूर्ण करें। ’लेस चैटिंग मोर चैंटिंग’ गप करते हुये नहीं बल्कि जप करते हुये यात्रा करे।
स्वामी जी ने कहा कि अब समय आ गया कि ’बोल बम बोल बम कचरा कर दो जड़ से खत्म’ के संकल्प के साथ कांवड यात्रा पूर्ण करें क्योकि कांवड यात्रा कचरा यात्रा नहीं है।
स्वामी जी ने कहा कि हमारा राष्ट्र पर्वो व त्यौहारों का राष्ट्र है। भारत की विविधता में एकता ही उसकी विशेषता है। यहां पर विभिन्न धर्मों, संस्कृतियों, भाषाओं और रंगों की विविधता होने के बाद भी सभी मिलकर त्यौहार मनाते है। भारत तीर्थों की भूमि है; पर्वों की भूमि है और पर्व हमें एक – दूसरे से जोड़ने और जुड़ने का संदेश देते हैं।
भारतीय परम्परा और हिंदू धर्म के तीज-त्यौहारों का अपना विशेष महत्व है। पौराणिक ग्रंथों के अनुसार सोमवार भगवान भोलेनाथ को समर्पित दिन है। सावन माह में प्रकृति का सौंदर्य, पुनर्जन्म, आध्यात्मिक ऊर्जा के संचार और आत्मिक शक्ति के विस्तार का दिव्य समय है। प्रकृति का पुनर्जन्म और नवांकुर इसी माह से आरम्भ होता है। बाहर के वातावरण में हरियाली संर्वद्धन और आन्तरिक वातावरण में चैतन्य का जागरण होता है। साधक, उपवास, साधना और भक्ति के माध्यम से अपने अन्दर आध्यात्मिक दिव्य शक्तियों का जागरण करते हैं।
वास्तव में देखें तो श्रावण माह ही नहीं बल्कि हर घड़ी और हर क्षण भगवान शिव का ही है परन्तु श्रावण माह की अपनी महिमा है। इस माह में मेघ अपना नाद सुनाते हैं, प्रकृति का अपना राग उत्पन्न होता है और मानव में आध्यात्मिक ऊर्जा का स्फुरण होता है। आदि काल से ही इस माह मंे साधक, शाकाहारी जीवनचर्या अपनाकर प्रकृतिमय दिनचर्या के साथ प्रार्थना, पूजा, प्रेम, प्रभु के दर्शन की प्रतीक्षा और प्रभु का प्रसाद पाने हेतु साधनारत रहते थे।
श्रावण मास में साधक अपने अंतर्मन का नाद सुनने के लिये है वनों में और शिवालयों में जाकर साधना करते थे, कावड़ यात्रा उसी का प्रतीक हैं। श्रावण माह में मनुष्य विशेष रूप से अपनी अर्न्तचेतना से जुड़ सकते हैं, अपने स्व से जुड़ सकते हैं और शिवत्व को प्राप्त कर सकते हैं।
श्रावण माह में प्राकृतिक का सौन्दर्य जीवंत हो जाता है, कलकल करते झरनों का दिव्य नाद और धरती के गोद में छोटे-छोटे नन्हें बीजों से पौधों का जन्म होता है, उसी प्रकार मनुष्य के हृदय में भी सत्विकता से श्रद्धा का जन्म होता है। आज जरूरत है श्रद्धा से समर्पण की ओर बढ़ने की, आध्यात्मिकता से आत्मीयता की ओर बढ़ने की तथा शिव साधना के साथ शिवत्व को धारण करने की। आईये शिव से शिवत्व की ओर बढ़े और इस धरा को स्वच्छत, प्रदूषण और प्लास्टिक मुक्त बनाने का संकल्प लें।