• September 19, 2024

भारतीय चिकित्सा में यज्ञ का महत् यज्ञ को भारतीय संस्कृति में लघु सूर का दर्जा दिया गया है

 भारतीय चिकित्सा में यज्ञ का महत् यज्ञ को भारतीय संस्कृति में लघु सूर का दर्जा दिया गया है
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जनपद हरिद्वार (रुड़की)

आलोक द्विवदी भारतीय चिकित्सा में यज्ञ का महत् यज्ञ को भारतीय संस्कृति में लघु सूर का दर्जा दिया गया है क्योंकि यज्ञ की अग्नि सामान अग्नि से बहुत पवित्र एवं शुभ होती है यज्ञ ज्ञानी से मनुष्य एवं प्रकृति दोनों के संगम मिलते हैं यज्ञ पैथी से मात्र प्राणी ही रोगमुक्त नहीं होते अपितु अन्य महा भूतों जैसे पृथ्वी वायु जल और आकाश भी पवित्र और शुद्ध हो जाते हैं प्राचीन काल से ही भारतीय संस्कृत में यज्ञ को स्वास्थ्य का केंद्र माना गया है प्राचीन काल से ही आत्मसाक्षात्कार से लेकर स्वर्ग सुख बंधन मुक्ति मंसूरी प्रायश्चित आत्मबल रिद्धि सिद्धि योग आदि के केंद यज्ञ थे यज्ञ से एक दिव्य वातावरण विन निमृत हो जाता था उस दिव्य की वातावरण में बैठने मात्र से रोगी मनुष्य निरोगी हो जाते थे चरक ऋषि ने चरक संहिता में लिखा है आरोग्य प्राप्त करने की इच्छा वालों को विधिवत हवन करना चाहिए बुद्धि को शुद्ध करने की यज्ञ में अपार क्षमता है यज्ञ चिकित्सा का दूसरा नाम यज्ञ बैठी है भिन्न-भिन्न रोगों के लिए विशेष प्रकार की हवन सामग्री प्रयुक्त करके उनके जो परिणाम आए हैं बहुत ही उत्साह जनक हैं यज्ञ पैथी का मूल सिद्धांत दिया है कि जो वस्तु जितनी सूक्ष्म होती है वह उतनी ही अधिक शक्तिशाली एवं उपयोगी बनती है यज्ञ पैथी के अनुसार मानवी काया सृष्टि की सर्वेश रचना है शरीर के मूल में अनेकानेक जादू भरी विशेषताएं की पड़ी है इस तथ्य का प्रतिपादन शरीर के महत्वपूर्ण घटक हारमोंस करते हैं यज्ञ ही एक ऐसा माध्यम है जिसके द्वारा संस्कारी औषधियों एवं पुष्टि को सूट स्थानों तक पहुंचाया जा सकता है यज्ञ चिकित्सा का आधार मजबूत है यज्ञ पैथी का मूल दर्शन रोग को जड़ तक औषधियों की पहुंच स्वास पर ही मानव जीवन आधारित है स्वास विश्वास के माध्यम से प्राण वायु का रक्त में प्रवेश एवं विकारों का निष्कासन होता है रक्त तक पहुंचने के लिए किसी भी वस्तु के लिए सर्व सुलभ मार्ग स्वास मार्ग है यज्ञ के तीन अर्थ होते हैं दान देव पूजन संगत करण इन्हें उदारता उत्कृष्टता एवं सहकारिता की दिशा धारा कहा जा सकता है यज्ञ दर्शन को जीवन में उतारने वाला कोई भी व्यक्ति इसी जीवन में स्वस्थ समृद्ध समुन्नत एवं सुसंस्कृत रह सकता है जग्गू पैथी चिकित्सा सिद्धांत के अनुसार विषाणु विषाणु का मारण जितना आवश्यक समझा जाता है उससे अधिक स्वस्थ कोशिकाओं में समर्थ था का एक पक्ष जहां विचारों को मारना होता है वही दुर्बलता को दूर कर संभलता का परी पोषण करना भी होता है यज्ञ चिकित्सा में यह दोनों विशेषताएं विद्यमान हैं उस के माध्यम से उपयोगी रासायनिक पदार्थों को इतना सूट बना दिया जाता है इस कारण वे अपने-अपने उपयुक्त प्रयोजनों को पूरा कर सकें यज्ञ पृथ्वी विज्ञान में ताप ध्वनि और प्रकाश को शक्ति की मूलभूत इकाई माना गया है आज के प्रदूषित वातावरण में अगर स्वच्छ वातावरण की स्थापना करनी है और हमें स्वस्थ रहना है तो यज्ञ को हमें अपनाना होगा और भारतीय युवाओं को स्वस्थ होने की सशक्त माध्यम बोलना होगा यह सशक्त माध्यम यज्ञ यज्ञ करें और स्वस्थ समाज की स्थापना में योगदान देकर उन्नत भारत की कल्पना करें 

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