स्वामी चिदानन्द सरस्वती 8वां भारत जल सप्ताह और 5 वां नदी उत्सव कार्यक्रम में विशेष रूप से आमंत्रित
कमल अग्रवाल (हरिद्वार )उत्तराखंड
ऋषिकेश/नई दिल्ली * परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने आज नई दिल्ली में आयोजित दो प्रमुख कार्यक्रमों ‘‘8वां भारत जल सप्ताह 2024 और 5वां नदी उत्सव’’ में मुख्य अतिथि के रूप में सहभाग किया।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि यह समय भारत को भारत के चश्मे से देखने का है। भारत को भारत की दृष्टि से जानने की जरूरत है। स्वामी जी ने कहा कि वर्तमान समय में सभी एआई (आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस) से आर आई (ऋषि इंटेलिजेंस) की ओर बढ़ना होगा क्योंकि ऋषि इंटेलिजेंस हमें अपनी जड़ों से जुड़ने की शिक्षा देता है।
ऋषि इंटेलिजेंस अर्थात् प्राचीन ज्ञान और परंपराओं से जुड़ना, जो हमें न केवल तकनीकी प्रगति बल्कि नैतिक और आध्यात्मिक विकास की ओर भी ले जाती हैं और हमें हमारी जड़ों से जोड़ती हैं। हम प्राचीन ज्ञान के माध्यम से आधुनिक समस्याओं का समाधान प्राप्त कर सकते हैं। प्राकृतिक उपचार, प्राकृतिक जीवन और स्वस्थ जीवनशैली अपनाकर प्रकृति के साथ सामंजस्य स्थापित कर सकते हैं।
इस अवसर पर स्वामी जी ने जैविक खेती और परंपरागत कृषि पद्धतियों का उल्लेख करते हुये कहा कि हमें पर्यावरण के साथ सामंजस्य स्थापित करने और स्वस्थ भोजन उत्पादन की दिशा में किसानों को प्रेरित करना होगा।
स्वामी जी ने कहा कि प्राचीन भारत में जल संचयन के लिए कई तकनीकें विकसित की गई थीं, जैसे कि बावड़ी, तालाब, और कुंड, ये तकनीकें आज भी जल संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं। हमारे ऋषियों ने वृक्षों और वनों के महत्व को समझा और उनकी रक्षा के लिये स्वयं भी वनों में प्रवास करने लगे। पौधारोपण और वन संरक्षण, जलवायु संतुलन बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं और इससे जल स्रोतों की भी सुरक्षा होती है।
वर्तमान समय में हमें जल का कुशल उपयोग और मिट्टी की नमी बनाए रखने के तरीकों पर विशेष ध्यान देना होगा। नदियाँ महज नदियाँ नहीं हैं बल्कि ये देश की संस्कृति का प्रतीक एवं पर्याय हैं। एक बड़ी आबादी के लिये नदियां जीवनदायिनी और जीविकादायिनी हैं और यह हमारी आस्था का भी केन्द्र है इसलिये नदियों के अविरल प्रवाह के साथ उनके पारिस्थितिकी तंत्र को सहेजना जरूरी है। इस समय हमारी नदियां, नाले और गाद-गदेरे हमसे अपने जीवन की भीक्षा मांग रहे हैं उनके लिये हम सभी को आगे आना होगा और सभी को मिलकर कार्य करना होगा।
नदियां धरती की रूधिर वाहिकायें हैं। धरती के सौन्दर्य की कल्पना नदियों के बिना नहीं की जा सकती इसलिये हमें जल की हर बूंद के महत्व को जानना और स्वीकार करना जरूरी है क्योंकि जल की हर बंूद में जीवन है अतः उनका उपयोग भी उसी प्रकार करना होगा। जल को बनाया तो नहीं जा सकता परन्तु संरक्षित जरूर किया जा सकता है। जल का मुद्दा किसी संगठन, राज्य और राष्ट्र का नहीं बल्कि सम्पूर्ण मानवता का है।
स्वामी जी ने कहा कि वर्तमान समय में नदियों में पानी की लगातार कमी होती जा रही है। कई सदानीरा नदियां मानसून तक ही सिमट कर रह गयी हैं। जागरूकता के अभाव और स्वार्थपूर्ण हितों के कारण जल स्रोत प्रदूषित होते जा रहे हैं। इतने बड़े पैमाने पर जल प्रदूषण हो रहा है कि कोई एक एजेंसी इसे रोक नहीं सकती इसलिये जनता को ही सबसे पहले आगे आना होगा और जल क्रान्ति को जन क्रान्ति, जल आन्दोलन को जन आन्दोलन और जल चेतना को जन चेतना बनाना होगा ।
8वां भारत जल सप्ताह 2024 और 5 वां नदी उत्सव कार्यक्रमों में सवजी ढोलकिया जी, श्रीमती, बसंती नेगी जी, डॉ. सच्चिदानंद जोशी जी, कस्तूरी पटनायक जी, श्रीमती. मैरी इलांगोवन, डॉ. स्वरूप भट्टाचार्य, श्री प्रकाश सामंत, श्री पीयूष त्यागी, प्रो. के. अनिल कुमार जी, श्री संतोष गुप्ता जी, मुख्य कार्यकारी अधिकारी, आईएसआरएन, डॉ. अनि मेहता जी, प्रमुख शोधकर्ता और प्रमुख जल केंद्र एवं नागरिक विज्ञान प्रयोगशाला विद्या भवन उदयपुर, श्री अतुल जैन जी, दीनदयाल शोध संस्थान, श्री अमरनाथ रेड्डी जी, निदेशक अनुसंधान एवं विकास, संस्कृति फाउंडेशन, श्री हितेश शंकर जी, प्रधान संपादक, पंचजन्य, सुश्री क्षिप्रा माथुर जी, डॉ. कर्स्टन एच जेन्सन, परियोजना अधिकारी, दनिदा अयाद, नदी बेसिन इंसिया मूल्यांकन परियोजना यूनिवर्सिटी ऑफ, कोपेनहेगन, डेनमार्क कैलाश गोदुका जलाधिकार फाउंडेशन श्री कार्तिक सप्रे, सीईओ नर्मदा समग्र, श्री विनोद मेलाना और अन्य विशिष्ट अतिथियों ने सहभाग कर दिया प्रेरणादायी उद्बोधन।