साहित्य अकादमी से सम्मानित ‘पद्मभूषण’ श्री माखनलाल चतुर्वेदी जी की जयंती पर भावभीनी श्रद्धांजलि
कमल अग्रवाल (हरिद्वार) उत्तराखंड
ऋषिकेश ÷ परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने साहित्य अकादमी से सम्मानित ‘पद्मभूषण’ श्री माखनलाल चतुर्वेदी जी की जयंती पर भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हुये कहा कि उन्होंने ‘‘मुझे तोड़ लेना वनमाली उस पथ पर तुम देना फेंक, मातृभूमि पर शीश नवाने जिस पर जायें वीर अनेक’’ जैसी यादगार व प्रेरणादायक कविताओं से भारतीय समाज में राष्ट्रभक्ति, ओज और देशप्रेम भरने में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
स्वामी जी ने कहा कि साहित्य और समाज का आपस में बहुत गहरा रिश्ता है। कवि, लेखक या साहित्यकार इस समाज के ही अंग हैं। भारत में ऐसे अनेक कवि हुये जिनकी रचनायें समाज के लिये अत्यंत प्रेरणादायी हैं जिनका पीढ़ी दर पीढ़ी अनुकरण किया जाता है तथा उन श्रेष्ठ रचनाओं से पे्ररणा लेकर एक श्रेष्ठ समाज का निर्माण भी किया जा सकता है।
श्री माखनलाल चतुर्वेदी जी ने परतंत्रता के समय समाज में व्याप्त असंगतियों से आहत होकर अनेक ऐसी रचनायें लिखी जो कि देशभक्ति से ओतप्रोत हैं। अपनी रचनाओं के माध्यम से उन्होंने समाज में एक क्रांति लाने का उत्कृष्ट कार्य किया। उनकी रचनाओं में प्रेम, भक्ति, वीरता, सामाजिक-राजनीतिक बदलाव, उस समय समाज में हुई उथल-पुथल या व्याप्त विसंगतियाँ सभी के दर्शन होते हैं। उनकी रचनायें उस समय की परिस्थितियों का ऐतिहासिक प्रमाण हमें देती है। रचनाओं के माध्यम से ही आज की पीढ़ी भी अपने इतिहास के गौरवपूर्ण समय के दर्शन कर पा रही हंै।
स्वामी जी ने कहा कि भारतीय साहित्य बहुत विशाल और वृहद हंै जो विभिन्न कालों में विभक्त है इसलिये हमें उस समय के समाज में व्याप्त परिस्थितियों और समाधान के विषय में जानकारी प्राप्त होती है। कवियों की रचनाएँ और साहित्यकारों का साहित्य ही हमें उस समय के भारत के दर्शन कराता हैं। साथ ही यह हमें अपनी संस्कृति, संस्कारों व इतिहास से भी जोड़ता है।
स्वामी जी ने कहा कि भारत का इतिहास हमारे साहित्य व दर्शन में समाहित है यदि हमें अपने देश, समाज, संस्कृति और उसकी परंपराओं को समझना है, तो अपने साहित्य में जुड़ना होगा और अपने साहित्य को पढ़ना होगा क्योंकि जब भी कोई लेखक या कवि अपनी कृतियों की रचना करते हैं तो उसमें उस समय के समाज की छवि दिखायी देती हंै।
श्री माखनलाल चतुर्वेदी जी की रचनाओं में केवल सामाजिक जीवन का ही चित्रण नहीं मिलता अपितु समाज के साथ राष्ट्र प्रेम का भी स्पष्ट उल्लेख मिलता है। उनकी रचनायें वास्तव में एक दर्पण की तरह है जो हमें समाज के प्राचीन स्वरूप के स्पष्ट दर्शन कराती है। आज उनकी जयंती पर भावभीनी श्रद्धांजलि और उनकी राष्ट्र भक्ति को नमन।