• October 18, 2024

जीवन का सम्मान और जीवन जीने का अधिकार सभी की प्राथमिकता ÷ स्वामी चिदानन्द सरस्वती

 जीवन का सम्मान और जीवन जीने का अधिकार सभी की प्राथमिकता ÷ स्वामी चिदानन्द सरस्वती
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कमल अग्रवाल (हरिद्वार )उत्तराखंड

ऋषिकेश ÷ अन्तर्राष्ट्रीय शून्य भेदभाव दिवस के अवसर पर परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि ’’भेदभाव समाज में एक कलंक की तरह है। यदि हम समाज में व्याप्त भेदभाव का समाधान नहीं करेंगे तो हम स्वास्थ्य और सतत विकास लक्ष्य को साकार नही ंकर पायेंगे। 

वैश्विक स्तर पर व्याप्त भेदभाव को समाप्त करने के लिये वैश्विक एकजुटता को बढ़ावा देना होगा तथा सभी को मिलकर एक समावेशी, करूणामय और शान्तियुक्त वातावरण के निर्माण हेतु अपना योगदान प्रदान करना होगा। जाति, लिंग, आयु या विकलांगता के आधार पर किसी भी व्यक्ति या समुह के प्रति पक्षपातपूर्ण, अन्यायपूर्ण या पूर्वाग्रहपूर्ण व्यवहार किसी भी व्यक्ति के मानसिक स्वास्थ्य और खुशहाल जीवन के लिये हानिकारक है जो अलगाववादी भावना को जन्म देता है। साथ ही इससे स्वास्थ्य देखभाल सेवाओं तक लोगों की पहुंच कम हो जाती है।

स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि सभी प्रकार के भेदभावों को समाज से समाप्त करने के लिये हमें अपने-अपने स्तरों पर सभी संस्कृतियों का उत्सव मनाना होगा तथा कट्टरता, घृणास्पद संदेशों व उद्बोधनों को समाप्त कर एकजुटता और समानता के व्यवहार को बढ़ावा देना होगा ताकि समावेशिता, सहानुभूति तथा सहिष्णुता से युक्त वातावरण का निर्माण किया जा सके।

स्वामी जी ने कहा कि भेदभाव या असमानता ऐसी सामाजिक समस्याएं हैं जिनका पूरे समाज पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता हैं। इनके कारण मानवाधिकारों के हनन के साथ ही स्वतंत्रता और गरिमा रूपी मानवीय मूल व मूल्य भी कमजोर होते हैं। इनका मूल या कारण कुछ भी हो परन्तु समाज में व्याप्त असमानता व भेदभाव के कारणों की जांच करने और उन्हें गहराई से समझने की जरूरत है।

इन पूर्वाग्रहों और असमानताओं को दूर करने के लिए हमें पहले उन्हें पहचानना होगा और फिर उनमें परिवर्तन लाने व सुधार करने हेतु प्रयास करना होगा क्योंकि यदि असमानता और भेदभाव इसी प्रकार पीढ़ी दर पीढ़ी दोहराया जायेगा तो एक समावेशी व प्रगतिशील समाज की स्थापना नहीं की जा सकती। 

भारत में इस ओर उत्तरोत्तर सुधार हो रहा है, लेकिन अभी भी बहुत कुछ किया जाना बाकी है। सार्वजनिक क्षेत्रों में महिलाओं का प्रतिनिधित्व बढ़ाना आवश्यक है। महिलाओं को उनके घरों, कार्यस्थलों और समाज में समानता दिलवाने के लिये एक व्यावहारिक बदलाव लाने की अत्यंत आवश्यकता है। भेदभाव किसी भी प्रकार का हो उसका समाज पर व्यापक और दूरगामी प्रभाव पड़ता है। इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि भेदभाव को समाप्त करना और समानता को बढ़ावा देना मानवाधिकारों का विषय भी है।

आध्यात्मिक गुरू और विख्यात मानवतावादी चिंतक स्वामी विवेकानंद जी ने बहुत खूबसूरती से साझा किया कि ‘किसी राष्ट्र की प्रगति का सबसे अच्छा पैमाना वहां की महिलाओं के साथ हो रहे व्यवहार से है। उनका मानना है कि, ‘जब तक महिलाओं की स्थिति में सुधार नहीं होगा तब तक दुनिया का कल्याण नहीं हो सकता’ इसलिये आईये हम सभी मिलकर भेदभाव और असमानता को दूर करने हेतु कदम बढ़ाये और सतत विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने हेतु अपना योगदान प्रदान करें।

परमार्थ निकेेतन में विभिन्न सेमिनारों और कार्यक्रमों के द्वारा विभिन्न धर्मों के धर्मगुरूओं को एक मंच प्रदान किया जाता है जहां से वे मिलकर समाज में व्याप्त भेदभावों पर खुल कर चर्चा हो सके।

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