• October 19, 2024

आज के भौतिक युग में उपवास चिकित्सा का उपयोग बहुत ही आवश्यक है प्राकृतिक चिकित्सा में रोग के निवारण के लिए प्रयोग चिकित्सा एक बहुत ही सस्ता एवं सुलभ साधन है उपवास आध्यात्मिक चिकित्सा का भी एक प्रभावशाली साधन

 आज के भौतिक युग में उपवास चिकित्सा का उपयोग बहुत ही आवश्यक है प्राकृतिक चिकित्सा में रोग के निवारण के लिए प्रयोग चिकित्सा एक बहुत ही सस्ता एवं सुलभ साधन है उपवास आध्यात्मिक चिकित्सा का भी एक प्रभावशाली साधन
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कमल अग्रवाल (जनपद )हरिद्वार

आज के भौतिक युग में उपवास चिकित्सा का उपयोग बहुत ही आवश्यक है प्राकृतिक चिकित्सा में रोग के निवारण के लिए प्रयोग चिकित्सा एक बहुत ही सस्ता एवं सुलभ साधन है उपवास आध्यात्मिक चिकित्सा का भी एक प्रभावशाली साधन है इसमें किसी प्रकार की आयु सीमा नहीं होती है और हर वर्ग का व्यक्ति उपवास कर सकता है उपवास का अर्थ है शरीर में पाचन प्रणा ली में कार्यरत समस्त अंगों को विश्राम देना होता है पाचन तंत्र को केवल उपवास काल में ही विश्राम मिलता है हमारे दैनिक दिनचर्या में निरंतर खाते रहने की आदत के कारण हमारा पाचन तंत्र भी निरंतर कार्य करता रहता है आदिकाल से ही भारतवर्ष में उपवास करने की प्रक्रिया चलती आ रही है धार्मिक ग्रंथों में उपवास केवल शारीरिक ही नहीं बल्कि मानसिक पवित्रता का भी एक साधन माना गया है उपवास एक प्राकृतिक स्थित है यह सारे रिक्त की मांग होती है उपवास का अर्थ केवल निराहार रहना ही नहीं बल्कि विश्वास शब्द का आध्यात्मिक रूप से जो अर्थ निकलता है उसके अनुसार उपवास निकट रहने की प्रक्रिया है इस प्रक्रिया में उपवास करने वाली की परमात्मा और प्रकृति के साथ निकटता होती है अर्थात जब मनुष्य कुछ नियमों का पालन करते हुए स्वयं को परमात्मा और प्रकृति की गोद में निश्चिंत होकर छोड़ देता है उसको उपवास कहते हैं रोगा अवस्था में उपवास अमृत की तरह कार्य करता है जब हम रोग से ग्रसित होते हैं तो हमारी भाषा ही बंद हो जाती है अवस्था में कुछ खाना विष के समान कार्य करता है क्योंकि रोग होने पर शरीर की सारी शक्ति रोग को दूर करने में लग जाती है उपवास में नई शक्ति प्रदान करने के साथ-साथ शरीर में उपस्थित है विजातीय पदार्थ जो रोग के कारण होते हैं उन्हें दूर करने में भी सहायक होते हैं उपवास शरीर में कटी हुई गंदगी और कचरे को साफ करता है परंतु यदि उपवास को उचित समय पर नहीं रोका गया तो उपवास काल में आवश्यक अंगों से शरीर के पोषक तत्वों का उपयोग होते ही शरीर का नाश प्रारंभ हो जाता है इसलिए उपवास रखते समय अपने शरीर की प्रकृति का ध्यान रखना चाहिए महात्मा गांधी का उपवास के प्रति महत्वपूर्ण स्थान था वे समय-समय पर उपवास रखकर अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखे थे तथा अपनी आध्यात्मिक शक्ति का विकास करते थे उपवास शारीरिक मानसिक एवं आध्यात्मिक स्वच्छता के लिए अपूर्व एवं एक ही उपाय है उपवास यदि ढंग से ना किया जाए तो इससे लाभ के स्थान पर हानि हो सकती है हमारा शरीर रबर की तरह बनी लचीली नालियों का बना होता है नालिया अधिक खाते रहने की आदत के कारण फैल जाती हैं जिससे उन पर रक्त का अधिक एवं और स्वभाविक दबाव पड़ने लगता है जिसके कारण शरीर के स्वाभाविक कार्यों में बाधा पड़ने लगती है उपवास काल में जब हम आहार लेना बंद करते हैं तो ला लिया हमें आप कहते हैं अपनी स्वाभाविक अवस्था में आने लगती हैं रक्त से प्याज पदार्थ निकलने लगता है यह कार्य उपवास के प्रारंभिक दिनों में होता रहता है जिससे रोगी को अपना शरीर हल्का अनुभव होने लगता है कुछ समय पश्चात हाथों में पुनः श्लेष्मा निकलकर रक्त में मिल जाता है और जल्दी यश रेशमा मूत्र द्वारा बाहर निकल जाता है फलता व्यक्ति स्वस्थ अनुभव करता है मनुष्य में ऊर्जा शक्ति का मुख्य स्रोत केवल भोजन नहीं है इससे भी अधिक प्रभावशाली एवं सूक्ष्मा स्रोत प्राणशक्ति है जिसे हमें ब्रह्मांडी ऊर्जा के रूप में जानते हैं जिसकी प्राप्ति का एकमात्र साधन ईश्वर है स्पष्ट है कि उपवास द्वारा मनुष्य की शारीरिक क्षमता में किसी प्रकार की कमी नहीं आती बल्कि उपवास द्वारा वह उत्तम स्वास्थ्य को प्राप्त करने में सक्षम रहता है मानव शरीर में उपवास एक प्रभावशाली उपचार साधन के रूप में कार्य करता है भारत और लक्षिका के असमान संगठन और शरीर में जाति पदार्थों को शरीर से निकालने में सहायता पहुंचाता है मानव शरीर में जो प्रक्रिया निरंतर चलती रहती हैं एक पाचन एवं दूसरी मल निष्कासन जब इन दोनों कार्यों में लगे यंत्रों से अतिरिक्त कार्य का भार पड़ता है तो यह क्रियाएं ठीक से नहीं हो पाती हैं जिसके कारण उत्पन्न विजातीय पदार्थ हमारी आंतरिक जीवन शक्ति को कमजोर कर देता है इससे शरीर में नकारात्मक प्रभाव पड़ता है शरीर में जाति पदार्थों का निष्कासन धीमा हो जाने के कारण वह शरीर में ही एकत्र हो जाते हैं जिसे आगे चलकर उनके रोग होने की संभावनाएं हो जाती हैं उपवास व्यक्ति की जीवन शक्ति बढ़ाने में सहायता प्रदान करता है उपवास से पाचन तंत्र को आराम मिलता है और मल निष्कासन की प्रक्रिया तेजी से होने लगती है जिसमें व्यक्ति स्वस्थ ऊर्जावान महसूस करता है धर्म पालन की एक विधि के रूप में उपवास का व्यवहार किया जाता है 7 दिन में 1 बार या 15 दिन में 1 महीने में एक बार उपवास अवश्य करना चाहिए आजकल नवरात्र का समय चल रहा है नवरात्रों में 9 दिन व्रत का भी विधान है एकादशी वासी पूर्णिमा के दिन में भी व्रत का विधान बनाया जाता है मुस्लिम समुदाय में रोजा का भी स्वास्थ्य की दृष्टि से महत्वपूर्ण स्थान है उपवास द्वारा रोग हो जाने पर पुनः रागनी प्रदीप होती है और शरीर में हल्का बना जाता है जिसके फलस्वरूप आरोग्य भूख प्यास में रुचि शरीर में तेजबल और वह उत्पन्न होता है

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