परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी का पावन सान्निध्य
कमल अग्रवाल (हरिद्वार) उत्तराखंड
ऋषिकेश/दिल्ली* परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी को डा. शंकर दयाल सिंह व्याख्यान माला – 2024, हमारी जरूरतें और चाहतें पर आयोजित कार्यक्रम में विशेष रूप से मुख्य वक्ता के रूप में आमंत्रित किया। इस अवसर पर माननीय उपराज्यपाल, जम्मू-कश्मीर श्री मनोज सिन्हा जी की गरिमामय उपस्थिति रही।
डॉ. शंकर दयाल सिंह व्याख्यान माला कार्यक्रम अत्यंत गौरवपूर्ण और ऐतिहासिक था। इस कार्यक्रम का विषय था हमारी जरूरतें और चाहतें, जो मानवता, समाज, और व्यक्तित्व के विकास के विभिन्न पहलुओं का स्मरण करता है।
हमारी जरूरतें और चाहतें विषय पर आधारित इस व्याख्यान माला का उद्देश्य यह समझाना था कि हमारी जीवन की आवश्यकताएँ क्या हैं और हमारी इच्छाएँ किस हद तक हमें सही दिशा में ले जाती हैं। इस विचार-विमर्श ने न केवल व्यक्तिगत, बल्कि समाज और राष्ट्र की आवश्यकता के हिसाब से सोचने की प्रेरणा दी। जहाँ एक ओर हमारी ज़रूरतें सीमित और मूलभूत होती हैं, वहीं हमारी इच्छाएँ अक्सर अतिशय होती हैं और हमें भौतिकवादी सोच की ओर ले जाती हैं। इस विषय पर मुख्य वक्ता के रूप में अपने विचार साझा करते हुये स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने जीवन के परम सत्य और आत्मिक संतुलन की बात की, जो केवल संतुष्टि और शांति से ही संभव है।
स्वामी जी ने कहा, हमारी सबसे बड़ी जरूरत आत्मिक शांति और समाज के लिए समर्पण की भावना है। आज के इस भागदौड़ भरे जीवन में, हमारी चाहतें इतनी बढ़ गई हैं कि हम अपने अस्तित्व की वास्तविक आवश्यकता को भूल जाते हैं। स्वामी जी ने यह भी कहा कि जब हम अपने अंदर की वास्तविक जरूरतों को समझते हैं, तो बाहरी इच्छाएँ अपने आप नियंत्रित हो जाती हैं।
स्वामी जी कहा कि जीवन में सोच व कोच श्रेष्ठ होने चाहिये। प्राचीन समय में हमारे ऋषि हमारे कोच थे। वे जंगलों में झोपड़ी में रहकर अपनी साधना से हमें कोंचिग देते रहे। उन्होंने हमें विश्वास व आस्था का चिंतन दिया। हम बड़े भाग्यशाली है कि भारत को पूज्य संतों व ऋषियों का मार्गदर्शन प्राप्त हुआ और वर्तमान में माननीय नरेन्द्र मोदी जी के रूप में प्रधानमंत्री भारत के पास है।
जम्मू और कश्मीर के माननीय उपराज्यपाल श्री मनोज सिन्हा जी ने अपने संबोधन में कहा कि आज समाज में जहां हमारी जरूरतें सीमित हो सकती हैं, वहीं हमारी चाहतों का दायरा लगातार बढ़ता जा रहा है। यह हम सभी के लिए चिंतन का विषय है। जब हम अपनी जरूरतों और चाहतों के बीच संतुलन बनाए रखते हैं, तभी हम एक सशक्त और समृद्ध समाज की दिशा में कदम बढ़ा सकते हैं।
श्री मनोज सिन्हा जी ने यह भी बताया कि सही दिशा में सोचने और कार्य करने से हम न केवल अपने व्यक्तिगत जीवन को बेहतर बना सकते हैं, बल्कि अपने समाज और देश की उन्नति के लिए भी योगदान दे सकते हैं।
इस कार्यक्रम में प्रमुख वक्ता के रूप में विभिन्न धार्मिक और सामाजिक नेताओं ने भी अपने विचार व्यक्त किये। उन्होंने अपनी जीवन यात्रा के अनुभवों को साझा करते हुए बताया कि आज की दुनिया में सबसे बड़ी आवश्यकता आत्मिक संतुलन और आंतरिक शांति की है। भौतिक सुख-साधन के पीछे दौड़ने के बजाय हमें अपने भीतर की शांति के स्रोत को पहचानने की आवश्यकता है।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी और श्री मनोज सिन्हा जी के विचारों ने सभी को आत्ममंथन करने और अपने जीवन में संतुलन बनाने की प्रेरणा दी। इस व्याख्यान माला ने यह सिद्ध कर दिया कि जब हम अपनी आंतरिक जरूरतों को समझने में सक्षम होते हैं, तो बाहरी दुनिया की सारी इच्छाएँ अपने आप छोटी लगने लगती हैं।
हमारी जरूरतें और चाहतें पर आयोजित इस व्याख्यान माला ने न केवल वर्तमान समाज की स्थितियों पर गहरा चिंतन किया, बल्कि यह भी बताया कि जीवन की असली आवश्यकता क्या है। यह कार्यक्रम एक महत्वपूर्ण संदेश लेकर आया, कि भौतिक सुखों के पीछे दौड़ने के बजाय हमें आत्मिक संतुलन और शांति की ओर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। इस कार्यक्रम ने सभी विभूतियों को यह एहसास कराया कि हमारी सबसे बड़ी आवश्यकता आंतरिक शांति और सही दिशा में जीवन जीने की है।
डॉ शंकर दयाल सिंह जी (27 दिसंबर 1937-27 दिसंबर 1995) राजनीति व साहित्य दोनों क्षेत्रों में लोकप्रिय थे। उनकी असाधारण हिंदी सेवा के लिए उन्हें सदैव स्मरण किया जाता रहेगा।
इस अद्भुत कार्यक्रम के आयोजन हेतु स्वामी जी ने उनके पुत्र रंजन कुमार सिंह व राजेश कुमार सिंह तथा पुत्री रश्मि को अनेकानेक शुभकामनायें दी
इस अवसर पर दिल्ली विश्व विद्यालय के प्रोफेसर्स अन्य कई विश्वविद्यालयों के प्राइस चांसलर विद्वानों व विभूतियों से पूरा एनडीएमसी कन्वेंशन सेंटर खचाखच भरा हुआ था