• October 18, 2024

स्वामी राघवानंद सरस्वती जी महाराज की तृतीय पुण्यतिथि पितृ पर्व नवमी तिथि के अवसर पर संत महापुरुषों की गरिमा मय उपस्थित के बीच मनाई

 स्वामी राघवानंद सरस्वती जी महाराज की तृतीय पुण्यतिथि पितृ पर्व नवमी तिथि के अवसर पर संत महापुरुषों की गरिमा मय उपस्थित के बीच मनाई
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ठाकुर मनोज कुमर /कमल अग्रवाल (हरिद्वार )उत्तराखंड

जनपद हरिद्वार *खड़खड़ी स्थित गंगा भक्ति आश्रम हिल बाईपास रोड खड़खड़ी में परम पूज्य गुरुदेव प्रातः स्मरणीय स्वामी राघवानंद सरस्वती जी महाराज की तृतीय पुण्यतिथि पितृ पर्व नवमी तिथि के अवसर पर संत महापुरुषों की गरिमा मय उपस्थित के बीच मनाई गई इस अवसर पर अनेको मठ मंदिर आश्रमों से महामंडलेश्वर महंत श्री महंत तथा संत महापुरुष पधारे सभी संत महापुरुषों ने परम पूज्य सतगुरु देव भक्ति पीठाधीश्वर 1008 श्री राघवानन्द सरस्वती जी महाराज को अपने श्रद्धा सुमन व श्रद्धांजलि अर्पित किये संत समागम को संबोधित करते हुए पंचायती श्री महानिर्वाणी अखाड़े के सचिव अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष परम विभूषित परम वंदनीय श्री महंत रवींद्र पुरी महाराज ने कहा जन्म और मृत्यु इस पृथ्वी लोक का सारस्वत सत्य है जो भी इस मृत्यु लोक में आया उसे जन्म के पश्चात जीवन का भोग भोगने के बाद मृत्यु का वर्णन करना ही पड़ता है चाहे वह देव के रूप में ही क्यों ना अवतरित हुए हो मृत्यु लोक का यही सत्य है संत महापुरुष दिव्य आत्माये समाज का मार्गदर्शन करने के साथ-साथ उन्हें सत्य की राह दिखाने हेतु इस पृथ्वी लोक पर आते हैं और उनका कार्य पूर्ण हो जाने के पश्चात वे महाप्रयाण कर जाते हैं गुरु ज्ञान के दाता है जो अपने ज्ञान के माध्यम से भक्तों के जीवन का उद्धार करते हैं आश्रम और मठ मंदिर बड़े-बड़े सभागार संत महापुरुषों के मार्गदर्शन में जनता के पैसे से जनता के उपयोग के लिए बनते हैं संत महापुरुषों एक छोटी सी कुटिया में या कमरे में अपनी साधना में लीन रहते हैं जो भी आश्रम मठ मंदिर होते हैं वह सब भक्तजनों के सुख सुविधा हेतु होते हैं संतों का कार्य तो धर्म के क्षेत्र में मार्गदर्शन करना है भक्तों को धर्म कर्म कथा प्रवचन के माध्यम से सत्य का बोध करना है इस सृष्टि में गुरु को सुयोग्य शिष्य मिल पाना कठिन है अगर गुरु को सुयोग्य शिष्य मिल जाये तो यह भी उसकी तपस्या का ही एक फल है कि उसके द्वारा धर्म के क्षेत्र में बनाई गई संपदा को वह भली भांति संभाल सके ब्रह्मलीन स्वामी राघवानन्द सरस्वती ने एक सुयोग्य शिष्य के रूप में अपने उत्तराधिकारी श्री कमलेशानन्द सरस्वती जी महाराज का चयन किया वे आज उनके उत्तराधिकारी के रूप में संस्था आश्रमो का दायित्व भली भांति निभा रहे हैं अपने गुरु का नाम रोशन कर रहे हैं संस्था आश्रम दिन प्रतिदिन निरंतर आगे बढ़ रहा है संतों का जीवन पूरी तरह समाज को समर्पित होता है संतो के सभी कार्यों में भक्तों का हित निहित होता है

इस अवसर पर बोलते हुए गंगा भक्ति आश्रम के परमाध्यक्ष परम विभूषित श्री महंत 1008 स्वामी कमलेशानन्द सरस्वती जी महाराज ने कहा मैं बडा ही भाग्यशाली हूं कि मुझे मेरे परम पूज्य गुरुदेव 1008 श्री श्री स्वामी राघवानंद सरस्वती( श्री स्वामी रघुनाथ स्वरूप जी महाराज) जैसे पावन गुरु का पावन सानिध्य प्राप्त हुआ उनकी ज्ञान रूपी अमृत वर्षा में स्नान कर मेरा यह मानव जीवन धन्य और सार्थक हो गया है

मेरे परम पूज्य गुरुदेव श्री श्री 1008 स्वामी राघवानन्द सरस्वती जी महाराज ज्ञान का एक विशाल सूर्य थे उनके ज्ञान का प्रताप आज भी भक्तों में हम लोगों के बीच विद्यमान है उन्हीं के बताये मार्ग पर चलते हुए मैं भक्तों व संतों की सेवा में सच्चा आनंद महसूस करता हूं जिस प्रकार भगवान श्री राम को माता शबरी के झूठे बेर खाकर उनकी भक्ति की शक्ति में भाव विभोर कर दिया था मैं भी उसी प्रकार गुरुजन के बताए मार्ग पर चलते हुए सेवा में ही सच्चा आनंद महसूस कर रहा हूं गुरु के श्री मुख से निकलने वाला एक-एक वाक्य सारस्वत सत्य होता है

गुरु इस पृथ्वी लोक पर साक्षात परमात्मा के स्वरूप है ऐसी परम दिव्य आत्मा को तृतीय पुण्यतिथि पितृ पर्व नवमी तिथि के अवसर पर संत महापुरुषों के पावन सानिध्य में गुरु अमृत की जो वर्षा हो रही है गुरुजनों के श्री मुख से जो अमृत रूपी कल्याणकारी वचन निकल रहे हैं वह हमारे जीवन को धन्य और सार्थक कर रहे हैं गुरुजनों संत महापुरुषों के श्री मुख से निकलने वाले ज्ञान का पावन प्रवाह जीवन को कल्याण की ओर ले जाने की दिशा प्रदान कर रहे है इस पृथ्वी लोक पर सतगुरु से बड़ा हमारा कोई सच्चा और बड़ा मार्गदर्शक नहीं होता गुरु ही हमारा मार्गदर्शन कर हमें सत्य की राह दिखाते हैं हमें जीवन जीने की कला सिखाते हैं अच्छे बुरे की पहचान करते हैं वैसे मैं आपको बताना चाहता हूं कि अगर मैं दूसरे व्यक्ति में कोई बुराई देख रहा हूं तो कहीं ना कहीं मेरे अंदर बुराई ने स्थान ग्रहण कर लिया है इसलिये हे भक्तजनों बुराई और भलाई से सदैव दूर रहो क्योंकि दोनों पीड़ा दाई हो सकती है सभी के अंदर अच्छाई देखो अगर किसी के अंदर कोई बुराई है भी तो वह हमारे सोचने और कहने से दूर नहीं होगी यह तो संस्कारों का प्रभाव है की हम किसी भी आयु में अच्छे संस्कार ग्रहण कर सकते हैं अच्छी शिक्षा ग्रहण कर सकते हैं अपने आसपास का वातावरण अच्छा में स्वच्छ बना सकते हैं कुछ बातें ऐसी होती हैं जो मनुष्य को खुद ग्रहण करनी पड़ती है

इस अवसर पर बोलते हुए महंत सूरज दास महाराज ने कहा गुरु का ज्ञान सूर्य के सामान तेजवान होता है अच्छे वचन और संस्कार ग्रहण करना हमारा धर्म है गुरु हमारे अंधकार भरे जीवन में ज्ञान का उदय कर देते हैं इस संसार पर बोलते हुए महामंडलेश्वर श्री ललितानन्द जी महाराज ने कहा धर्म कर्म और कथा प्रवचन मनुष्य के मन मस्तिष्क में ज्ञान का उदय कर देते हैं

इस अवसर पर महंत नारायण दास पटवारी महाराज महंत सूरज दास महाराज कोठारी महंत राघवेंद्र दास महाराज महंत साध्वी रंजना देवी साध्वी पूजा गिरी स्वामी कृष्ण देव महाराज महंत प्रेमानंद महाराज महंत रवि देव महाराज महंत केशवानंद महाराज महंत माता राजमाता जी महाराज स्वामी केशवानंद जी महाराज महंत दिनेश दास महाराज स्वामी सूर्य देव महाराज महंत कैलाशा नन्द महाराज महंत सत्यव्रतानन्द महाराज महंत सुतीक्ष्ण मुनि महाराज महंत दिनेश दास महाराज महंत विवेकानंद महाराज महाराज महंत जगजीत सिंह महाराज महंत विनोद महाराज महाराज कोतवाल धर्मदास महाराज कोतवाल रामेश्वर गिरी महाराज सहित भारी संख्या में संत महापुरुष तथा भक्तगण उपस्थित थे

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