स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने संस्कार, पर्यावरण संरक्षण की संस्कृति और शास्त्रों के संरक्षण व संवर्द्धन का दिया संदेश
कमल अग्रवाल (हरिद्वार) उत्तराखंड
ऋषिकेष ÷ परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने अंतर्राष्ट्रीय संग्रहालय दिवस के अवसर पर भारत की गौरवशली संस्कृति, संस्कार, परम्पराओं, शास्त्रों, विरासत के साथ पृथ्वी, पर्यावरण और जलस्रोत्रों के संरक्षण का संदेश दिया। उन्होंने कहा कि गौरवशाली विरासत के साथ श्रेष्ठ संस्कारों और हमारे दिव्य शास्त्रों का संरक्षण भी नितांत आवष्यक है। जिस प्रकार हम संग्रहालयों में अपने पूर्वजों और प्राचीन संस्कृति की यादों को संजोकर रखते है उसी प्रकार पूर्वजों, हमारे ऋषियों और शास्त्रों द्वारा के दिये संस्कारों को अपने जीवन में और अपने परिवार में संजोेेकर रखे। संस्कारों के साथ अपनी आने वाली पीढ़ियों का पोषण करें।
हमारे ऋषियों ने अथक प्रयास कर इन दिव्य शास्त्रों, मंत्रों, परम्पराओं और संस्कारों का निर्माण किये, उनकी खोज कि ताकि हमें वह ज्ञान सहज रूप से प्राप्त हो सके। जिस प्रकार ठंड के समय में कोई एक व्यक्ति लकड़ियां एकत्र कर आग जलाता है परन्तु उसका लाभ कई लोग लेते हैं और आस-पास के वातावरण में भी गर्माहट हो जाती है, ऐसे ही ऋषियों द्वारा बनाये इन दिव्य संस्कारों को अपने घरों में जीवंत व जागृत बनाये रखे ताकि उसका लाभ सभी को प्राप्त हो, सभी के जीवन में शांति का समावेश हो सके.
स्वामी जी ने कहा कि हमारे शास्त्र हमारी विलक्षण विरासत है। भारतीय साहित्य और संस्कृति की पहचान, न केवल भारत की धरोहर है बल्कि भारत की आत्मा भी है। हम सभी के लिये गौरव का विषय है कि श्रीरामचरितमानस, पंचतंत्र और सहृदयलोक-लोकन को यूनेस्को के मेमोरी ऑफ द वर्ल्ड एशिया-पैसिफिक रीजनल रजिस्टर में सम्मिलित किया गया है। वास्तव में यह पल सनातन धर्म, भारतीय संस्कृति और समृद्ध साहित्यिक जगत के लिये अविस्मरणीय पल है।
ये कालजयी रचनाएं भारत की समृद्ध साहित्यिक विरासत हैं जिन्होंने हमारे ह्दय में न केवल एक अमिट छाप छोड़ी है बल्कि हमें जीवन जीने की दिशा भी प्रदान की है। इन रचनाओं ‘रामचरितमानस, ‘सहृदयालोक-लोकन’ और ‘पंचतंत्र’ के रचनाकार पूज्य गोस्वामी तुलसीदास जी, आचार्य आनंदवर्धन जी और श्री विष्णु शर्मा जी की साधना को नमन। जिन्होंने हमें इन अद्भुत साहित्य के दर्शन कराये।
स्वामी जी ने कहा कि अपने बच्चों को संग्रहालय में रही वस्तुओं, लाइब्रेरी में रखे श्रेष्ठ साहित्य, अद्भुत रचनाओं व मन्दिरों में ही नहीं बल्कि हमारे दिल में बसे हमारे उत्कृष्ठ शास्त्रों के माध्यम से भारत के इतिहास और संस्कृति से जोड़ा जा सकता है। संग्रहालय, सांस्कृतियों के आदान-प्रदान, संस्कृतियों को समृद्ध करने, जनसमुदाय के बीच आपसी समझ, सहयोग और शांति को बढ़ावा देने के लिए महत्वपूर्ण मंच के रूप में कार्य करता है। हम समावेशी दुनिया बनाने का प्रयास करें, भलाई और कल्याण को बढ़ावा दे और सभी व्यक्तियों और समुदायों की जरूरतों और आवाजों को प्राथमिकता दे तो चारों ओर सद्भाव व समरसता से युक्त वातावरण का निर्माण किया जा सकता है।
समाज में संग्रहालय की भूमिका के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए हर साल 18 मई को अंतर्राष्ट्रीय संग्रहालय दिवस मनाया जाता है। 1977 में इंटरनेशनल काउंसिल ऑफ म्यूजियम (प्लेटिनम) ने अंतर्राष्ट्रीय संग्रहालय दिवस बनाया। यह संगठन हर साल वस्तुओं के संग्रहालय के विषय में उचित सुझाव देता है जिसमें वैश्वीकरण, सांस्कृतिक और पर्यावरण की देखभाल को भी शामिल किया गया है।
इसका यह भी एक उद्देश्य है कि लोग संग्रहालयों के माध्यम से अपने इतिहास और अपनी प्राचीन, समृद्ध और गौरवशाली परंपराओं और विरासत को जाने और समझे। साथ ही इसमें अपने पूर्वजों की यादों को संजोकर रखा जाता है।
अंतरराष्ट्रीय संग्रहालय परिषद के अनुसार ”संग्रहालय में ऐसी अनेक चीजें सुरक्षित रखी जाती हैं जो मानव सभ्यता की याद दिलाती है संग्रहालय में रखी वस्तु हमारी सांस्कृतिक धरोहर तथा प्रकृति को प्रदर्शित करती है”
संग्रहालयों में हमारे पूर्वजों की अनमोल यादों को संजोकर रखा जाता है। किताबें, पाण्डुलिपियाँ, रत्न, चित्र, शिलाचित्र और अन्य सामानों के रूप में अनेक तरह की वस्तुएं संग्रहालयों में हमारे पूर्वजों की यादों को ज़िंदा रखे हुई हैं। राष्ट्रों की संस्कृतियों को समझने के लिये इन वस्तुओं का विशेष योगदान हैं, इसलिये उन्हें संग्रहालयों में सुरक्षित रखा जाता है। वर्तमान समय में संस्कारों को अपने परिवारों में सहेज कर रखने की जरूरत है ताकि आने वाली पीढ़ियों को भी भारत की गौरवशाली संस्कृति के दर्शन हो सके।