संगीत आपसी सहानुभूति को बढ़ाने का उत्कृष्ट माध्यम ÷ स्वामी चिदानन्द सरस्वती
कमल अग्रवाल (हरिद्वार )उत्तराखंड
ऋषिकेश ÷ विश्व आॅटिज्म जागरूकता दिवस के अवसर पर परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि ‘‘ऑटिज्म से पीड़ित व्यक्तियों के जीवन की गुणवत्ता में सुधार लाने, समान आधार पर सभी मानवाधिकारों और मौलिक अधिकारों की पूर्ण प्राप्ति हेतु आज का दिन समाज को जागरूक करता है।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि ऑटिज्म से पीड़ित बच्चे कला, संगीत, लेखन आदि क्षेत्रों में उत्कृष्ट कौशल दिखा सकते हैं, बस जरूरत है उनके अन्दर आत्मविश्वास जागृत करने की और उनके साथ खड़े होने की। उनके सम्मानजनक जीवन के लिये उन्हें संगीत से जोड़ना अत्यंत आवश्यक है।
संगीत उनके जीवन में एक थेरेपी की तरह कार्य करता है। संगीत एक ऐसा सशक्त माध्यम है जो ’शोर से दूर हमें शान्ति की ओर लौटने का संदेश देता है। जिससे मानसिक व्याधि और तनाव दूर होता है। सात्विक संगीत सुनने से मन को शान्ति और शक्ति मिलती हंै।
संगीत से मन की शांति के साथ-साथ खुशी भी मिलती है। संगीत सामंजस्य या सामाजिक जुड़ाव की भावना पैदा करने में मदद करता है। यह संस्कृतियों को एक साथ लाता है और पूर्वाग्रह को कम कर आपसी सहानुभूति को बढ़ाता है इसलिये अगर आॅटिज्म से पीड़ित बच्चों को संगीत से जोड़ा जाये तो उनके जीवन में विलक्षण परिवर्तन हो सकता है।
आॅटिज्म से पीड़ित व अन्य दिव्यांग बच्चों को सम्मान के साथ एक सभ्य व तनावमुक्त जीवन का आनंद लेने का पूरा अधिकार होना चाहिए ताकि वे भी समुदाय में होने वाली गतिविधियों में सक्रिय रूप से भाग ले सके। साथ ही अन्य सभी बच्चों को प्राप्त होने वाले अधिकार, शिक्षा, स्वास्थय और अन्य सामुदायिक गतिविधियों में भी वे सम्मानजनक रूप से सहभाग कर सके ऐसे वातावरण का निर्माण हम सभी को मिलकर करना होगा।
ऑटिज्म या ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर (एएसडी) एक न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर है जो मस्तिष्क के कामकाज को प्रभावित करता है और यह स्थिति आजीवन रहती है। यह ज्यादातर बच्चों को प्रभावित करता है और जीवन के पहले तीन वर्षों के दौरान बच्चों में होने की सम्भावना होती है जो कि एक विकासात्मक विकार है।
ऑटिज्म से पीड़ित व्यक्ति को दूसरों से बातचीत करने में दिक्कत होती है। उन्हें यह समझने में समस्या होती है कि दूसरे लोग क्या सोचते हैं और क्या महसूस करते हैं। इस प्रकार उन्हें शब्दों या इशारों या चेहरे के भावों या स्पर्श से खुद को अभिव्यक्त करने में कठिनाई होती है। साथ ही उन्हें सीखने में भी दिक्कत होती है इसलिये पूरे समाज को मिलकर एक ऐसे वातावरण का निर्माण करना है जहां पर कोई भी पीछे न छूट जायें; सभी को सम्मानजनक जीवन जीने का अधिकार प्राप्त हो।