हमारा विकास ऐसा हो जो प्रकृति, पृथ्वी और मनुष्य की समस्याओं को केंद्र में रखकर पुनरुत्थान की ओर बढ़े ÷ स्वामी चिदानन्द सरस्वती
कमल अग्रवाल (हरिद्वार) उत्तराखंड
ऋषिकेश, (28 फरवरी 2023) ÷ परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि एक विकासवादी भविष्य के निर्माण के लिये विज्ञान और आध्यात्मिकता का संयुक्त स्वरूप और दोनों का समन्वय बहुत जरूरी है। आध्यात्मिकता, विज्ञान की वह नींव है जिस पर विकास का मजबूत भवन खड़ा किया जा सकता है। नींव मजबूत होगी तो भवन स्थायी और सुदृढ़ होगा क्योंकि अध्यात्म और विज्ञान एक ही सिक्के के दो पहलू है इसलिये दोनों को साथ लेकर चलना होगा, दोनों में से एक भी कमजोर होगा तो सतत विकास की कल्पना नहीं की जा सकती हैं।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि विज्ञान, भौतिक प्रगति का आधार है परन्तु अकेला विज्ञान सजृनकर्ता नहीं हो सकता। विज्ञान के साथ मानवता और नैतिकता होगी तभी वह विध्वंसक नहीं बल्कि सृजन करने वाला होगा। आज के युग में धरती पर मानवता और नैतिकता से युक्त औद्योगीकरण की ही आवश्यकता है, क्योंकि यही तो सहिष्णुता और सार्वभौमिकता का सूत्र भी है।
पुरातात्विक निष्कर्षों से यह पता चलता है कि हमारी प्राचीन सभ्यतायें भी विज्ञान सम्मत और वैज्ञानिकता से युक्त थीं परन्तु उन सभ्यताओं का विकास नैतिक मूल्यों के आधार पर किया गया था, न केवल विकास बल्कि उसमें कई तात्कालिक समस्याओं का समाधान भी निहित था। उस समय विकास में मानव के साथ-साथ प्रकृति और पृथ्वी के प्रति अहिंसा, सत्य, प्रेम, शुचिता और ईमानदारी के भाव भी थे आज वह खोते दिखायी दे रहें हैं।
वर्तमान समय में एक ऐसी विकास प्रणाली विकसित करने की जरूरत है जो समाज के अंतिम छोर पर खड़े व्यक्ति को विकास की मुख्य धारा में जोड़ने के साथ ही एक स्वावलंबी समाज का निर्माण करें ताकि हमारे प्राकृतिक संसाधन और धरती माँ को भी जीवंत बनाये रखा जा सके। हमारा विकास ऐसा हो जो प्रकृति, पृथ्वी और मनुष्य की समस्याओं को केंद्र में रखकर पुनरुत्थान की ओर बढ़े।
अगर हम और हमारी आने वाली पीढ़ियां केवल भौतिक विकास के पैमाने पर आगे बढ़ती रहीं तो वह दिन दूर नहीं जब हम इस हरी-भरी धरती को एक तपते ग्रह के रूप में बदल देंगे इसलिये यह समय जागने और जगाने का है तथा अपनी गौरवमयी संस्कृति के मूल्यों के साथ संपूर्ण मानवता और वसुधैव कुटुंबकम् की भावना से आगे बढ़ते रहने का है।
स्वामी जी ने कहा कि आज की सबसे बड़ी आवश्यकता है प्रकृति के प्रति उदारतापूर्ण व्यवहार, जो हमारी भारतीय संस्कृति का मूल है। पुनः उस मूल रूप अर्थात उदारता की नितांत आवश्यकता है। भारतीय संस्कृति के जो आधारभूत मूल्य हैं संवेदना, सद्भाव, दया, करूणा, प्रेम, शांति, सहिष्णुता इन मूल्यों का प्रयोग हमें अपनी प्रकृति के साथ करना होगा। हमें आध्यात्मिक पथ पर चलते हुये भौतिक प्रकृति को जानना, समझना, व्यवहार करना और फिर विकास के पथ पर आगे बढ़ना है यही एक सहिष्णु मार्ग है जिस पर अमल कर सतत, सुरक्षित और सार्वभौमिक मानवतावादी विकास सम्भव है।
सर चंद्रशेखर वेंकट रमन द्वारा रमन इफेक्ट ’की खोज करने की स्मृति में हर वर्ष 28 फरवरी को राष्ट्रीय विज्ञान दिवस के रूप में मनाया जाता है। चंद्रशेखर वेंकट रमन को उनके इस कार्य के लिये वर्ष 1930 में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। पहला राष्ट्रीय विज्ञान दिवस वर्ष 1987 में मनाया गया था। मूल उद्देश्य जनसमुदाय में विज्ञान के महत्त्व और उसके अनुप्रयोग के संबंध में संदेश का प्रचार करना। विज्ञान के प्रति समझ और लोकप्रियता की संस्कृति को बढ़ावा देना है।